Skip to product information
1 of 1

Lexicon

[Hindi] Kankal (कंकाल)

[Hindi] Kankal (कंकाल)

Regular price Rs. 199.00
Regular price Rs. 199.00 Sale price Rs. 199.00
Taxes included.
Free Shipping Over Rs 499
Save Extra On Prepaid Orders

Shipping & Services

Estimated Delivery
Pan-India · Mon–Sun
Shipping
Free over ₹499
Auto-applied at checkout
Payments
COD Available Secure via Razorpay
UPI · Cards · Netbanking

Coupons & Offers

Most popular
Get ₹10 OFF
Buy any 2 Books
LITTLEGYAAN
Get ₹20 OFF
Buy over ₹499
GYAANI20
Get ₹50 OFF
Buy over ₹999
GYAANI50
Get ₹120 OFF
Buy over ₹1999
GYAANI120
Get 10% OFF
Buy over 10 qty
GYAAN10
Get 15% OFF
Buy over 20 qty
GYAAN15
Coupon copied!
View full details

Jaishankar Prasad was a prominent writer of modern Hindi Literature. He was born on 30 Januray 1890 in Sarai Goverdhan in Kashi. He underwent his basic education in Kashi and later he took lessons in Sanskrit, Hindi, Urdu and Persian at his home. He was bestowed with the titles of a poet, playwright and novelist. He died on 15 November, 1937 in Kashi due to tuberculosis. A classic Hindi novel, Kankal depicts the true picture of the ills of human civilization.With his spectacular narrative techniques, Jaishankar Prasad hits at the stark reality of the Indian society. It unveils the curtain of illusion and reveals the threadbare atrocious reality of several double-faced institutions like social service organizations, religious preachers and politicians, and how they exploit widows and innocent children. These scenarios are still relevant in the Indian context.

Highlights
Publisher ‏- ‎ Lexicon Publication
Language ‏- ‎ English
FormatPaperback
ISBN-139789393050588
Jai Shankar Prasad - जयशंकर प्रसाद

Jai Shankar Prasad - जयशंकर प्रसाद

जयशंकर प्रसाद (जन्म 30 जनवरी 1889- मृत्यु 15 जनवरी 1937), हिन्दी कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार तथा निबन्ध-लेखक थे। वे हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। उन्होंने हिन्दी काव्य में एक तरह से छायावाद की स्थापना की जिसके द्वारा खड़ीबोली के काव्य में न केवल कामनीय माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई, बल्कि जीवन के सूक्ष्म एवं व्यापक आयामों के चित्रण की शक्ति भी संचित हुई और कामायनी तक पहुँचकर वह काव्य प्रेरक शक्तिकाव्य के रूप में भी प्रतिष्ठित हो गया। बाद के, प्रगतिशील एवं नयी कविता दोनों धाराओं के, प्रमुख आलोचकों ने उसकी इस शक्तिमत्ता को स्वीकृति दी। इसका एक अतिरिक्त प्रभाव यह भी हुआ कि 'खड़ीबोली' हिन्दी काव्य की निर्विवाद सिद्ध भाषा बन गयी। जयशंकर प्रसाद का जन्म माघ शुक्ल दशमी, संवत्‌ 1946 वि॰ तदनुसार 30 जनवरी 1890 ई॰ दिन-गुरुवार) को काशी में हुआ। इनके पितामह बाबू शिवरतन साहू दान देने में प्रसिद्ध थे और इनके पिता बाबू देवीप्रसाद जी भी दान देने के साथ-साथ कलाकारों का आदर करने के लिये विख्यात थे। इनका काशी में बड़ा सम्मान था और काशी की जनता काशीनरेश के बाद 'हर हर महादेव' से बाबू देवीप्रसाद का ही स्वागत करती थी। प्रसाद जी की प्रारंभिक शिक्षा काशी में क्वींस कालेज में हुई थी, परंतु यह शिक्षा अल्पकालिक थी। छठे दर्जे में वहाँ शिक्षा आरंभ हुई थी और सातवें दर्जे तक ही वे वहाँ पढ़ पाये। उनकी शिक्षा का व्यापक प्रबंध घर पर ही किया गया, जहाँ हिन्दी और संस्कृत का अध्ययन इन्होंने किया। प्रसाद जी के प्रारंभिक शिक्षक श्री मोहिनीलाल गुप्त थे। वे कवि थे और उनका उपनाम 'रसमय सिद्ध' था। शिक्षक के रूप में वे बहुत प्रसिद्ध थे। चेतगंज के प्राचीन दलहट्टा मोहल्ले में उनकी अपनी छोटी सी बाल पाठशाला थी।[5] 'रसमय सिद्ध' जी ने प्रसाद जी को प्रारंभिक शिक्षा दी तथा हिंदी और संस्कृत में अच्छी प्रगति करा दी।[7] प्रसाद जी ने संस्कृत की गहन शिक्षा प्राप्त की थी। उनके निकट संपर्क में रहने वाले तीन सुधी व्यक्तियों के द्वारा तीन संस्कृत अध्यापकों के नाम मिलते हैं। डॉ॰ राजेन्द्रनारायण शर्मा के अनुसार "चेतगंज के तेलियाने की पतली गली में इटावा के एक उद्भट विद्वान रहते थे। संस्कृत-साहित्य के उस दुर्धर्ष मनीषी का नाम था - गोपाल बाबा। प्रसाद जी को संस्कृत साहित्य पढ़ाने के लिए उन्हें ही चुना गया।" विनोदशंकर व्यास के अनुसार "श्री दीनबन्धु ब्रह्मचारी उन्हें संस्कृत और उपनिषद् पढ़ाते थे।"[6] राय कृष्णदास के अनुसार रसमय सिद्ध से शिक्षा पाने के बाद प्रसाद जी ने एक विद्वान् हरिहर महाराज से और संस्कृत पढ़ी। वे लहुराबीर मुहल्ले के आस-पास रहते थे। प्रसाद जी का संस्कृत प्रेम बढ़ता गया। उन्होंने स्वयमेव उसका बहुत अच्छा अभ्यास कर लिया था। बाद में वे स्वाध्याय से ही वैदिक संस्कृत में भी निष्णात हो गये थे।"[7] बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्कृत-अध्यापक महामहोपाध्याय पं॰ देवीप्रसाद शुक्ल कवि-चक्रवर्ती को प्रसाद जी का काव्यगुरु माना जाता है।
  • Fast Delivery

    Orders will Dispatch usually be within 2 Days

  • Easy Exchange

    We have 3 Days Replacement/Exchange Policy.

  • Easy Support

    Whatsapp Chat :- (+91)8171011725

    Email :- support@gyaanstore.com

1 of 3